झारखण्ड सरकार द्वारा एम.डी.ए. कार्यक्रम के सम्बन्ध में स्टेट टास्क फ़ोर्स की बैठक का आयोजन

Ranchi- झारखण्ड सरकार, लिम्फेटिक फाइलेरिया (हाथीपांव) के उन्मूलन हेतु पूरी तरह प्रतिबद्ध है। इसी के फलस्वरूप राज्य सरकार द्वारा आगामी 16 सितम्बर से 30 सितम्बर तक  झारखण्ड के 8 फाइलेरिया प्रभावित जिलों (लोहरदगा, हज़रीबाग, गिरिडीह, गढवा, पू० सिंहभूम, प० सिंहभूम, खूंटी और रांची ) में कोरोना के दिशा- निर्देशों के अनुसार शारीरिक दूरी, मास्क और हाथों की साफ- सफाई का अनुपालन करते हुए फाइलेरिया रोग के उन्मूलन के लिए मास ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन (एम.डी.ए) कार्यक्रम प्रारंभ किया जा रहा है।
 
इस कार्यक्रम के सफल किर्यन्वयन के लिए अपर मुख्य सचिव, स्वास्थ्य, चिकित्सा शिक्षा एवं परिवार कल्याण विभाग, झारखंड, अरुण कुमार सिंह की अध्यक्षता में स्टेट टास्क फ़ोर्स की बैठक का आयोजन किया गया। 
 
इस अवसर पर विभिन्न विभागों के वरिष्ठ अधिकारी उपस्थित थे। अपर मुख्य सचिव ने सभी अधिकारियों को निर्देश दिए कि एम.डी.ए. कार्यक्रम के दौरान सभी गतिविधियाँ सही रूप से सम्पादित हों और कोई भी कमी न रह जाये। उन्होंने कहा कि मास ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन के दौरान फाइलेरिया रोधी दवाओं का वितरण नहीं, बल्कि प्राशिक्षित स्वास्थ्यकर्मियों के सामने लाभार्थियों द्वारा दवा का सेवन सुनिश्चित होना चाहिए साथ कार्यक्रम का बेहतर प्रचार -प्रसार भी सुनिश्चित किया जाए जिससे समुदाय में इस कार्यक्रम के प्रति जागरूकता बढ़े। 
 
इसके साथ ही, राज्य स्तर से सभी विभागों के साथ समन्वय बनाकर कार्यक्रम के दौरान आने वाली किसी भी समस्या का त्वरित समाधान किया जाये। उन्होंने यह भी कहा कि स्टेट टास्क फ़ोर्स की टीम को एम.डी.ए की हर गतिविधि और तैयारियों की बहुत गंभीरता से मोनिटरिंग करनी होगी। 
 
बैठक में उपस्थित झारखंड के राज्य कार्यक्रम पदाधिकारी, वेक्टर जनित रोग नियंत्रण कार्यक्रम, डॉ. अनिल कुमार  ने बताया कि 16 सितम्बर से 30 सितम्बर तक चलाये जा रहे एम.डी.ए. कार्यक्रम में फाइलेरिया से मुक्ति के लिए 2 वर्ष से कम उम्र के बच्चों, गर्भवती महिलाओं और अति गंभीर रूप से बीमार व्यक्तियों को छोड़कर सभी लोगों को उम्र के अनुसार डीईसी और अलबेंडाजोल की निर्धारित खुराक प्रशिक्षित स्वास्थ्यकर्मियों द्वारा घर- घर जाकर, अपने सामने मुफ़्त खिलाई जाएगी। 
 
डॉ अनिल ने यह भी बताया कि किसी भी आयु वर्ग में होने वाला फाइलेरिया संक्रमण लिम्फैटिक सिस्टम को नुकसान पहुंचाता है और अगर इसका इलाज न किया जाए तो इससे शारीरिक अंगों में असामान्य सूजन होती है। 
 
फाइलेरिया के कारण चिरकालिक रोग जैसे हाइड्रोसील (अंडकोष की थैली में सूजन), लिम्फेडेमा  (अंगों में सूजन) से ग्रसित लोगों को अक्सर सामाजिक भेदभाव सहना पड़ता है, जिससे उनकी आजीविका व काम करने की क्षमता भी प्रभावित होती है। 
 
उन्होंने बताया कि राज्य में वर्ष 2021 के आंकड़ों के अनुसार लिम्फेडेमा (अंगों में सूजन)  के लगभग 43768 मरीज़ हैं और  हाइड्रोसील (अंडकोष की थैली में सूजन) के लगभग 46220 मरीज़ हैं। 
 
कार्यक्रम के बढ़ते क्रम में, एंटोमोलोजी की राज्य परामर्शी सज्ञा सिंह ने बताया कि राज्य स्तर से जिला स्तर तक एम.डी.ए कार्यक्रम को सफलतापूर्वक संपन्न करने के लिए सम्बंधित पदाधिकारियों के साथ समय- समय पर वार्ता की जा रही है और पूरे प्रयास किये जा रहें हैं कि फाइलेरिया रोधी दवाईयों की और मानव संसाधनों की कोई कमी न हो। 
 
विश्व स्वास्थ्य संगठन के राज्य एनटीडी समन्वयक डॉ. अभिषेक पॉल ने बताया कि कार्यक्रम की प्रतिदिन मोनिटरिंग और समीक्षा की जायेगी ताकि अगर कोई भी समस्या आये तो तुरंत उसका निदान किया जा सके। इसके साथ ही क्षेत्र में दवा सेवन के दौरान किसी प्रकार की आकस्मिक समस्या से निपटने के लिए रैपिड रेस्पोंस टीम आवश्यक दवाओं के साथ तैयार रहेगी।  
 
इस अवसर पर ग्लोबल हेल्थ स्ट्रेटजीज के अनुज घोष, प्रोजेक्ट कंसर्न इंटरनेशनल के कलाम खान, केयर संस्था के प्रतिनिधि नीरज कुमार,  एनआईएमआर के प्रतिनिधि ने भी प्रतिभाग किया।

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